दुनिया की बातों से लेकर दुनियादारी की बातें। खबरें और रोचक जानकारियां और कभी-कभी चिंतन
Sunday, August 6, 2017
फिल्मसमीक्षा- हिंदी मीडियमः बच्चों का एडमिशन बच्चों का खेल नहीं
Thursday, May 4, 2017
सलमान की ट्यूबलाइट चमकी
Monday, May 1, 2017
अंडे पर ही होगी उसकी पूरी जन्मकुंडली
अंडे पर ही होगी उसकी पूरी जन्मकुंडली
पहले मुर्गी आई या अंडा इस सवाल का जवाब आज तक अच्छे-अच्छे तुरर्मखां भी नहीं दे सके। कोई कहता है कि पहले अंडा आया और इससे मर्गी जन्मी, लेकिन अंडा दिया किसने ? जाहिर है पहले मुर्गी आई। पीढी-दर-पीढी मथ रहे इस सवाल पर अब ज्यादा दिमाग खपाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अंडा कब आया यह जानना आपके लिए चुटकी बजाने जितना आसान हो जाएगा।
दरअसल सरकार जल्द ही ऐसी व्यवस्था करने जा रही है जिससे अंडा अपनी पूरी जानकारी खुद ग्राहक को देगा। जैसे कब उसका जन्म हुआ और उसकी पौष्टिकता कितनी है। अंडों की गुणवत्ता को लेकर आ रही शिकायतों के मद्देनजर सरकार जल्द यह कदम उठाने जा रही है। इसके तहत अब अंडे पर मुहर लगेगी, जिसमें उसके जन्म की तारीख लिखी होगी। अंडा कितना सेहतमंद है यह भी आपको आसानी से पता चल जाएगा। सरकार इसके लिए एक निशान बनाएगी। आर्गेनिक का यह निशान इस बात की गारंटी होगा कि सेहतमंद मुर्गी ने ही यह अंडा दिया है। अंडा देने वाली मुर्गी को सिर्फ जैविक दाना ही दिया गया है, इसके लिए भी यह निशान होगा। दरअसल पोल्ट्री फार्म ज्यादा उत्पादन के लालच में मुर्गियों को एंटीबायोटिक देते हैं। इससे उनकी सेहत पर तो असर पड़ता ही है अंडों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। अंडों में एंटीबायोटिक, एफलाटाक्सिन और माइक्रोएब्स मिलने के बाद ही सरकार अंडों की गुणवत्ता के मानक तय करने की दिशा में सक्रिय हुई है। माइक्रोएब्स कई बीमारियों जैसे फ्लू और खसरे का कारण बनते हैं। एफलाटाक्सिन बैहद विषैले होते हैं और कैंसर को जन्म देते हैं। देश में वर्ष 2017 में करीब 55.11 बिलियन अंडों का उत्पादन हुआ। कुल उत्पादन में पोल्ट्री फार्म की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत है।
Friday, April 28, 2017
सियामी से रनवीर तक कई को कास्टिंग काउच का शिकार बनाने की कोशिश
रनवीर सिंह के साथ सियामी |
फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर की हत्या की साजिश में तीन साल कैद की सजा पाने वाली मॉडल प्रीति जैन यौन शोषण का आरोप लगा फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच का तूफान ला चुकी हैं। प्रीति ने मधुर पर 2004 में बलात्कार का आरोप लगाया था, जो कोर्ट में साबित नहीं हो सका। लेकिन इसने चमचमाते बॉलीवुड की कास्टिंग काउच की गंदगी को सतह पर ला दिया था। वैसे यह पहली बार नहीं था। इससे पहले भी बॉलीवुड में काम के एवज में सेक्सुअल फेवर मांगने वालों के जब तक किस्से सामने आते ही रहते थे। कुछ अभिनेता और अभिनेत्रियों ने खुलकर तो कुछ ने दबी जबान में ऐसे सेक्सुअल फेवर के प्रस्ताव मिलने की बात भी मानी। इनमें सबसे नया नाम है फिल्म मिर्जिया से बॉलीवुड में दस्तक देने वाली अभिनेत्री सियामी खेर। सियामी ने कहा कि अपने संघर्ष के दिनों में वह ऑडिशन देने के लिए घंटों लाइनों में लगती थी। अपनी बारी के इंतजार के दौरान उनका पाला कई बार ओछी मानसिकता वाले डायरेक्टरों से पड़ा। 16 साल की उम्र से मॉडलिंग कर रही सियामी ने कहा कि शुक्र है पहला फिल्मी ब्रेक मिलने से पहले ही मैने इंड्रस्ट्री का यह स्याह रूप भी देख लिया।
अभिनेत्री कंगना रनौत, टिस्का चोपड़ा, सुरवीन चावला भी कास्टिंग काउच को लेकर खुलासा कर चुकी है। अभिनेता रनवीर सिंह, आयुषमान खुराना, प्रियांशु चटर्जी ने भी कई मौकों पर बातचीत के दौरान ऐसे ओछे प्रस्ताव मिलने का खुलासा किया है। फिल्म इंड्रस्ट्री की क्वी ‘क्वीन’ कंगना ने बताया था कि एक बार उनसे यौन सुख संतुष्टि का प्रस्ताव दिया गया था। कंगना ने कोई समझौता करने के बजाय प्रस्ताव को खारिज कर दिया। अभिनेत्री सुरवीन चावला भी दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम के दौरान कास्टिंग काउच का शिकार होने से बची। सुरलीन ने कहा कि मैने ऐसा प्रस्ताव स्वीकार करने के बजाय अपनी प्रतिभा और मेहनत के बूते काम हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की। आमिर खान, प्रकाश झा, नागेश कुकनूर समेत कई दिग्गजों के साथ काम कर चुकीं और विभिन्न भाषाओं में 45 से ज्यादा फिल्मे करने वाली अभिनेत्री टिस्का चोपड़ा ने भी कहा था कि ऐसे प्रस्ताव मिलते हैं। लेकिन आपको काम पर भरोसा करते हुए इन्हें सख्ती के साथ खारिज कर देना चाहिए।
कंगना रनौत |
सुरवीन चावला |
आयुषमान खुराना |
अभिनेता रनवीर सिंह ने भी स्वीकारा था कि वह भी एक बार कास्टिंग काउच के शिकार होते-होते बचे। ऐसा ही कुछ फिल्म विक्की डोनर से अपनी धाक जमा चुके अभिनेता आयुषमान खुराना के भी साथ हुआ। उन्हें भी एक डायरेक्टर ने सेक्सुअल फेवर के लिए अप्रोच किया, लेकिन उन्होंने कड़ाई से इसे खारिज कर दिया। तमाम अभिनेता और अभिनेत्री कास्टिंग काउच की सच्चाई को स्वीकार करते हैं, लेकिन उनका यह भी कहना है कि यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या करते हैं? उन्हीं लोगों का इस्तेमाल संभव है जो इसे होने देते हैं।
Friday, April 14, 2017
यहां सीटी सुनते ही भाग जाते हैं खुले में शौच करने वाले
Sunday, March 12, 2017
इरोम चानू शर्मिला : 16 साल के संघर्ष का यह सिला
ये कुछ सवाल हैं, जो मणिपुर विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से मेरे मन में उठने शुरू हुए। इसका सबसे बड़ा कारण है इरोम की पार्टी पीपुल्स रिसर्जेंस एंड जस्टिस अलायंस (पीआरजेए) की करारी हार। पीआरजेए ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा और तीनों पर जमानत ही जब्त नहीं हुई, दो सीटों पर तो प्रत्याशियों को नोटा से भी कम वोट मिले। तीन बार से मुख्यमंत्री ओ इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरी इरोम खुद थोबल सीट पर कुल 90 वोट पा सकीं। जबकि यहां नोटा का बटन दबाने वाले मतदाता 143 थे। पीआरजेए के टिकट पर लड़ने वाली नजमा बीबी को वाबगई सीट पर मात्र 33 वोट मिले। प्रदेश की इस पहली मुस्लिम महिला प्रत्याशी से ज्यादा यहां नोटा (117 वोट) चला। तीसरे प्रत्याशी इ. लेचोमबाम को थेंगमीबंद सीट पर सिर्फ 573 वोट मिले।
जिस प्रदेश में 86फीसदी वोट पड़ें हों और उसमें भी महिलाओं का मत प्रतिशत सबसे ज्यादा हो, वहां पीआरजेए को मिले मामूली मत हिला देने वाले हैं।
जनता जनार्दन के ‘आयरन लेडी’ के साथ इस सलूक की कुछ-कुछ भनक 9 नवंबर 2016 को अनशन खत्म करने के बाद ही मिलनी शुरू हो गई थी। ज्यादातर समर्थकों आंदोलन खत्म करने का फैसला नहीं भाया था।. अनशन तोड़कर जब वह घर की तरफ जा रही थी तो मुहल्ले वालों ने उन्हें संदेश भेजकर वहां आने से रोक दिया था। उन्हें उसी अस्पताल में रुकने को मजबूर होना पड़ जिसमें वह अनशन के दौरान भर्ती रही। यही नहीं ‘सेव शर्मिला ग्रुप’ ने भी उनसे नाता तोड़ लिया। समर्थकों ने आंदोलन खत्म करने को धोखा करार दिया था। फिर भी इरोम 16 सालों की अपनी तपस्या को नया आयाम देने के लिए राजनीतिक जीवन में उतरने के अपने इरादों पर अडिग रही। उनके इस जज्बे को देश-दुनिया में सराहा भी गया पर अब नतीजे कह रहे हैं कि सिर्फ बलिदान से चुनाव नहीं जीते जाते।
इरोम हारीं तो हैं, लेकिन उनकी इस पराजय ने एक मिथक ,राजनीति में जब तक अच्छे लोग नहीं आएंगे इसे बदला नहीं जा सकता, को भी तोड़ दिया है। साफ है कि भले ही लोग नेताओं को लेकर नकारात्मक छवि रखें पर वे इसे बदलने देना भी नहीं चाहते। आखिर अफस्पा के खिलाफ महज 28 साल की उम्र से भूख हड़ताल शुरू करने के बाद अस्पताल में बंदी के रूप में जीवन गुजारने वाली इरोम को इसके बाद भी क्या अपनी अच्छाई का सबूत देना बाकी था? याद रहे14 मार्च को 45 साल की हो रहीं इरोम ने अपनी अब तक की जिंदगी का लगभग एक तिहाई समय बंदी के रूप में गुजारा है।
आगे का रास्ता तंग
प्रचार के दौरान विधानसभा चुनाव को केवल अभ्यास बताते हुए अगली बार पूरे दमखम से मैदान में उतरने का भरोसा देने वाली इरोम उम्मीद से उलट नतीजे मिलने से हताश हैं। राजनीति को अलविदा भी कह सकती हैं। नतीजों के बाद इरोम ने कहा कि वह चुनाव परिणाम से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं, लेकिन इसमें लोगों का कोई दोष नहीं है. वोट के अधिकार पर पैसों की ताकत भारी पड़ी है। राजनीति को छोड़ सकती हूं, लेकिन अफस्पा के खिलाफ दूसरे मंचों से मेरी लड़ाई जारी रहेगी। राजनीति को हथियार बना संघर्ष को मुकाम तक पहुंचाने की दम तोड़ती यह कोशिश शुभ संकेत नहीं है।
यूं हुई थी अनशन की शुरुआत
इरोम चानू शर्मिला को वर्ष 2000 में इंफाल में हुई एक घटना ने झकझोर दिया था। दरअसल यहां बस स्टाप के पास मणिपुर राइफल्स के काफिले पर हमला किया गया था। इसके बाद 2 नवंबर 2000 को मणिपुर राइफल्स के जवानों ने यहां 10 यात्रियों का कथित एनकाउंटर किया था। मरने वाले यात्रियों में 1998 की राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार विजेता सीनम चंद्रमणि भी शामिल थी. इसके बाद इरोम ने मणिपुर से अफस्पा हटाने की मांग को लेकर अनशन शुरू कर दिया था। तीन दिन बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
इंफाल में चुनाव नतीजों के बाद निराश बैठीं इरोम चानू शर्मिला
Thursday, February 16, 2017
पढ़ना जरूरी है, पर सोच-समझकर
Sunday, February 5, 2017
एक रुपया और रिश्ता
एक रुपये में आप क्या-क्या ले सकते हैं. जरा सोच कर देखिए। एक या दो टाफी, एक माचिस। एक छोटा कोने वाला समोसा. ज्यादा दिमाग पर जोर डालेंगे तो एक दो चीज और याद आ सकती है। य़ानी खरीद सकने लायक एक रुपये में कोई बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है। पर एक बेहद बड़ी चीज सिर्फ इस एक रुपये में आसानी से तय़ हो जाती है। वह भी अबसे नहीं सालों से । जब इसकी कीमत होती थी तब भी और अब जब इसकी कीमत मामूली बची है तब भी।
नहीं समझे..बताता हूं. य़ह है रिश्ता। जी हां। पश्चिमी यूपी और हरियाणा के एक बेहद बड़े हिस्से में एक रुपये में ही रिश्ते तय हो जाते हैं। यह दहेज को मात देने का शायद यहां का सबसे पुराना और आजमाया हुआ नुस्खा है। लेन-देन के नाम पर सिर्फ रुपये की बात तय कर वर-वधू पक्ष अपनी और से यह पक्का कर देते है कि इसके अलावा और कुछ नहीं होगा। हां, जहां तक बारात के स्वागत-सत्कार और दूसरी बाते हैं उनमें वधू पक्ष स्वतंत्र है वह अपनी सामर्थ्य से जो चाहे करे। इसी परंपरां का मैने कई बार निर्वहन होते देखा है। आज भी ऐसे ही एक विवाह के बारे में सुना। जिसमें एक रुपये के रिश्ते की बदौलत न केवल एक बेटी की विदाई हुई, बल्कि दोस्तों को उसमें नवदंपत्ति के लिए फ्रिज, सिलाई मशीन, अलमारी जैसेे गृहस्थी के सामान अपनी और से देते हुए देखा। कितना अजब है न अपना यह समाज जिसमें शादी में करोड़ो खर्च कर अपनी शान बघारने वाले लोग हैं तो साथ ही एक रुपये के रिश्ते की व्यवस्था भी है । जिसके तहत मां-बाप सम्मान के साथ बेटी के हाथ पीले करने में भी समर्थ हैं।
एक और वज्रपात, नीरज भैया को लील गया कोरोना दिल के अंदर कुछ टूट सा गया है, ऐसा कुछ, जिसका जुड़...
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हर मुठभेड़ की तरह दिल्ली के जामिया नगर में हुई आतंकी मुठभेड़ को भी समुदाय विशेष के तथाकथित बुद्धिजीवी और इस वर्ग के रहनुमा मजहबी रंग देने से...
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जनप्रतिनिधि हैं तो मौज काटिये। कानून बनाने की ताकत आपके हाथ में जो है। आपका छोटा सा कष्ट भी बहुत बड़ा है और जनता का बड़ा कष्ट भी बहुत छोटा। ...
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एक और वज्रपात, नीरज भैया को लील गया कोरोना दिल के अंदर कुछ टूट सा गया है, ऐसा कुछ, जिसका जुड़...