Sunday, February 5, 2017

एक रुपया और रिश्ता


एक रुपये में आप क्या-क्या ले सकते हैं. जरा सोच कर देखिए। एक या दो टाफी, एक माचिस। एक छोटा कोने वाला समोसा. ज्यादा दिमाग पर जोर डालेंगे तो एक दो चीज और याद आ सकती है। य़ानी खरीद सकने लायक एक रुपये में कोई बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है। पर एक बेहद बड़ी चीज सिर्फ इस एक रुपये में आसानी से तय़ हो जाती है। वह भी अबसे नहीं सालों से । जब इसकी कीमत होती थी तब भी और अब जब इसकी कीमत मामूली बची है तब भी।
नहीं समझे..बताता हूं. य़ह है रिश्ता। जी हां। पश्चिमी यूपी और हरियाणा के एक बेहद बड़े हिस्से में एक रुपये में ही रिश्ते तय हो जाते हैं। यह दहेज को मात देने का शायद यहां का सबसे पुराना और आजमाया हुआ नुस्खा है।  लेन-देन के नाम पर सिर्फ रुपये की बात तय कर वर-वधू पक्ष अपनी और से यह पक्का कर देते है कि इसके अलावा और कुछ नहीं होगा। हां, जहां तक बारात के स्वागत-सत्कार और  दूसरी बाते हैं उनमें वधू पक्ष स्वतंत्र है वह अपनी सामर्थ्य से जो चाहे करे। इसी परंपरां का मैने कई बार निर्वहन होते देखा है। आज भी ऐसे ही एक विवाह के बारे में सुना। जिसमें एक रुपये के रिश्ते की बदौलत न केवल एक बेटी की विदाई हुई, बल्कि दोस्तों को उसमें नवदंपत्ति के लिए फ्रिज, सिलाई मशीन, अलमारी जैसेे गृहस्थी के सामान अपनी और से देते हुए देखा। कितना अजब है न अपना यह समाज जिसमें शादी में करोड़ो खर्च कर अपनी शान बघारने वाले लोग हैं तो साथ ही एक रुपये के रिश्ते की व्यवस्था भी है । जिसके तहत मां-बाप सम्मान के साथ बेटी के हाथ पीले करने में भी समर्थ हैं।













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