Sunday, April 25, 2021

                                    एक और वज्रपात, नीरज भैया को  लील गया कोरोना


 दिल के अंदर कुछ टूट सा गया है, ऐसा कुछ, जिसका जुड़ना भारी है। कोरोना वायरस महामारी की यह दूसरी लहर ऐसी खतरनाक है कि रोज मनहूस  खबरे  मिल रही हैं ऐसी  जिन्हें सुनकर दिल बैठ जाता है। फोन की घंटी डराने लगी  है।  दस दिनों में बिल्डिंग में एक ही परिवार की दो महिलाओं बहू-सास का निधन हो गया। तीन दिन पहले गांव में ताऊ जी के बेटे अनिल शर्मा इस दुनिया को अलविदा कह गए, उनके गम से उबर भी नहीं पाए थे कि आज सुबह ममेरे भाई और खेकड़ा के एमएम इंटर कालेज में शिक्षक नीरज वत्स कोरोना संक्रमण से चल बसे। 53-54 वर्ष की आयु वाले दोनों ही भाइयों की कच्ची गृहस्थी है।  



नीरज भैया से जुड़े तमाम वाकये, उनकी कही तमाम बातें, उनसे लड़ना-झगड़ना सब याद आ रहा है। बार-बार आंसू आते हैं उन्हें पौंछता हूं और फिर उनकी कोई स्मृति  घेर लेती है और भावुक हो जाता हूं। भाभी और बच्चों के लिए प्रार्थना करने लगता हूं। घर से पता चला कि अभी भी भाभी और तीनों बच्चे बीमार हैं। सभी को बुखार है। उनकी चिंता सता रही है। बार-बार ईश्वर से यही विनती कर रहा हूं कि सब को ठीक कर दो। हे भगवान! पति और पिता का साया खो चुके इस परिवार पर तो पहले ही वज्रपात हो चुका है। 

कोरोना वायरस महामारी की यह दूसरी लहर पहली से भी ज्यादा खतरनाक तो है ही इससे निपटने में साधनों की कमी और सरकारी तंत्र की उदासीनता ने इसे और घातक बना दिया है। पिछले कई दिनों से जान-पहचान के तमाम लोग जो बीमार हुए उनके लिए आक्सीजन, अस्पताल में बिस्तर और  जरूरी दवाओं के इंतजाम के लिए जब प्रयास किए तो सच मानिए सिर्फ रोना ही आया। इतनी लाचारी-बेबसी कि खुद के होने का कोई अर्थ ही नहीं दिखा।  फिर भी हौसला बनाए रखा है।  अभी भी जब भी कोई मदद के लिए पुकारता है तो  अपनी भरसक कोशिश करने का प्रयास करता हूं, कि शायद कुछ बात बन जाए और आशा-निराशा के बीच कई बार संतोषजनक परिणाम भी सामने आता है। लेकिन मन के एक कोने में दहशत पसरती जा रही है। यह तब और बढ़ रही है जब यह कहा जा रहा है कि कोरोना का पीक अभी आना बाकी है। लगभग एक माह बाद 25-30 मई के बीच देश का कोरोना का पीक आएगा। हे भगवान, तब क्या होगा।  

कोरोना त्रासदी का शिकार हो रहे लोग सरकार के लिए महज संख्या है और यह आंकड़ा वह हर रोज जारी कर रही है, लेकिन जो लोग इसमें अपने को गंवा रहे हैं , खो रहे हैं उनके दुख का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, आखिर उनका  पूरा संसार ही उजड़ जा रहा है। सरकार कुछ करेगी इस उम्मीद में रहने के बजाय अच्छा होगा कि खुद को यथासंभव घर में कैद कर इसका शिकार होने से बचाएं। हाथ जोड़कर विनती है कि अनावश्यक बाहर जाने से  बचें। एक-दूसरे को हौंसला दे, उनका दुख बांटे। जो मदद कर सकते हों करें, हम मिलकर लड़ेंगे तभी इस कोरोना दानव को परास्त कर पाएंगे। 

Sunday, August 9, 2020

-------फिलहाल----- हिरोशिमा और नागासाकी के सबक 75 साल बाद भी अधूरे

 

(नागासाकी स्थित नागासाकी शांति पार्क जहां रविवार को परमाणु हमले की 75वीं बरसी पर लोग एकत्र हुए और एटमी हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धाजंलि दी। साभार-जापान टाइम्स।)

अगस्त माह की शुरुआत में हर साल दुनिया जापान में बरपाई गई उस तबाही और क्रूरता को याद करती है, जिसने मानवता को कभी न भरने वाला जख्म दिया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा छह दिसंबर 1945 में पहले हिरोशिमा में और उसके तीन दिन बाद यानी नौ अगस्त को नागासाकी में परमाणु बम गिराया गया था। माना जाता है कि  इन परमाणु हमलों में जापान में दो लाख से ज्यादा लोग तत्काल मारे गए। बाद में भी रेडिएशन अपना कहर बरपाता रहा। इस तबाही को इस बरस 75 साल पूरे हो गए हैं। आज भी हिरोशिमा में करीब 50 हजार लोगों पर इस हमले का असर है जबकि नागासाकी में करीब 30 हजार लोग इसका दंश झेल रहे हैं।

इस तबाही के बाद से दुनिया भर के अमन पसंद लोग साल दर साल न सिर्फ दुनिया के देशों को आगाह करते रहे हैं, बल्कि एटमी हथियारों  की होड़ रोकने के लिए अपनी हर संभव कोशिश में जुटे रहे हैं। हालांकि ये कोशिशें थोथी ही नजर आती हैं, क्योंकि हिरोशिमा और नागासाकी के बाद से परमाणु हथियार वाले देशों की संख्या बढ़ी ही है। कुछ ने अपनी सुरक्षा तो कुछ ने क्षेत्रीय सुरक्षा की आड़ में एटमी ताकत हासिल की जबकि बाकी देश येन-केन प्रकारेण इसे हासिल करने में जुटे हुए हैं।  

आखिर इस सुरक्षा के मायने क्या हैं, क्या यह सिर्फ थोथी दलील नहीं है, क्योंकि परमाणु बम का इस्तेमाल चाहे वह अपनी सुरक्षा के लिए किया जाए या दूसरे के लिए हर हाल में मानवता के लिए तो यह विनाशकारी ही साबित होगा। जहां भी गिरेगा वहीं की पुश्ते इसकी बर्बादी को झेलने के लिए अभिशप्त होंगी। इसके बावजूद चाहे ईरान और चाहे दक्षिण कोरिया या फिर ऐसे ही अन्य देश सत्ता दंभ और इससे बनाए रखने के लालच में परमाणु ताकत पाने में जुटे हुए हैं।  


(नागासाकी स्थित नागासााकी शांति पार्क में रविवार को 11.02 बजे (स्थानीय समय अनुसार) लोगों ने मौन धारणकर परमाणु हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी। साभार-जापान टाइम्स) 


आखिर किससे और किसलिए सुरक्षा की बात ये देश करते हैं। दुनिया जिस ताकत का दंभ भरती है, वह कितनी खोखली है यह फिलहाल एक अंजान से कोरोना वायरस ने साबित कर दिया है। विनाशक मिसाइलों, अत्याधुनिक विमानों और परमाणु बमों के जखीरे वाले देश इस नामालूम से वायरस के सामने अपनी आबादी को बचाने में बौने साबित हो रहे हैं। आज यानी 9 अगस्त 2020 तक दुनिया में 1,98,06,285 लोगों को यह वायरस अपनी चपेट में ले चुका है। जबकि 7,29,591 लोगों की इससे मौत हो चुकी है। कोरोना वायरस संक्रमण की जद में आने  वाले देशों में पहले नंबर पर दुनिया का सबसे ताकतवर देश कहा जाने वाला अमेरिका है जहां 51.5 लाख लोगों में संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है। वहीं यहां यह वायरस 1.65 लाख लोगों की जान ले चुका है।

वायरस के कहर से पीड़ित देशों में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर ब्राजील (संक्रमित-3,01,369 और मृत 1,00,543)और तीसरे नंबर पर भारत (कुल संक्रमित 2,153,010 और मृत 43,453) है। हालांकि दावा यह भी है कि दुनिया के कुल संक्रमितों में से 1.23 करोड़ लोग इस संक्रमण से उबर चुके हैं।

दुनिया में अपनी विनाशलीला दिखा रहे कोविड-19 को मात देने के लिए पूरी दुनिया अपनी एडी-चोटी का जोर लगाकर इसकी दवा बनाने में जुटी है, लेकिन अभी तक उसके हाथ सफलता नहीं लग सकी है। जबकि वायरस को सामने आए एक साल होने को है, क्योंकि अब ऐसी जानकारी सामने आ रही है कि पिछले साल अगस्त में इस वायरस ने चीन को अपनी जद में ले लिया था।

परमाणु हथियारों के प्रति दुनिया के देशों की ललक से साफ जाहिर होता है कि हिरोशिमा और नागासाकी के सबक अधूरे ही रह गए, क्योंकि अगर एटमी हथियारों की होड़ में पड़ने के बजाय मुल्कों ने अपने यहां स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सुधारों पर जोर दिया होता तो अब कोरोना की यह विभीषिका इतनी भयावह नहीं होती। स्वास्थ्य क्षेत्र के सुधार वेंटीलेटर और दवाओं की किल्लत नहीं होने देते और शिक्षा सुधार लोगों को हाथ धोने का महत्व पहले ही समझा चुके होते सरकारों को अपने लोगों को हाथ धोने और मास्क लगाने के लिए बाध्य नहीं करना पड़ता। जुर्माने जैसी व्यवस्था नहीं रखनी पड़ती।  

Tuesday, May 5, 2020

शराब के शौकीनों के कंधों पर देश की अर्थव्यवस्था का जिम्मा


---पवनेश कौशिक----

राज्य सरकारों के शराब की दुकानें खोलने के फैसले को लेकर चाहे जो मीन-मेख निकाली जा रही हो, लेकिन एक फैसले ने लोगों को खूब हंसाया है। लॉकडाउन 3.0 के ऐलान और इसमें एकल शराब की दुकानों पर से पाबंदी हटाने के फैसले के साथ ही सोशल मीडिया पर चुटकुलों, फोटों और वीडियो की बाढ़ आ गई। व्हाट्सअप, फेसबुक, ट्वीटर से  लेकर और टिकट़ाक तक तमाम सोशल मीडिया माध्यमों में इन्हे शेयर किया गया।  किसी ने इसके जरिये शराब का व्यवसाय समझाया तो किसी ने अर्थव्यवस्था में इसका योगदान।  पेश है ऐसे ही कुछ चुनिंदा चुटकुले व खूब शेयर किया गया एक फोटो । इस फोटो में शराब के लिए मशक्कत कर रहे युवक की फटी चड्ढी सबके सामने आ गई। इसी को लेकर लोगों ने खूब मजाक ली कि युवक अपने लिए फटी चड्ढी नहीं खरीद कर देश को राजस्व देने के लिए शराब खरीदने में जुटा है। 
1.कोरोना का सही इलाज क्या है??? कोरोना इतना क्यों फैल रहा है??? कोरोना के लिए जिम्मेदार कौन??? इन सब सवालों के जवाब ... निकटतम ठेके पर - 4 मई से

2.       सरकार ने चार मई से शराब की दुकाने खोलने का निर्देश दिया है! इसके साथ ही देश की अर्थव्यवस्था का सारा ज़िम्मा अब शराबी समुदाय के कंधों पर आन पड़ा है और ये काम अकेले ही करना पडेगा क्योंकी इस बार बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, तम्बाकू समुदाय का सहयोग भी नहीं मिलेगा! तो सभी मदिरा प्रेमी देशभक्तों से आह्वान है, दारू के साथ चखने पे भी पूरा जोर रखें और देश कि अर्थव्यवस्था को वापिस पटरी पर ले आयें!

3.       जिन शराबियों का तिरस्कार किया जाता रहा है वो ही कल से देश की अर्थव्यवस्था सम्हालेंगे!!

4.       अब समझ आया कि एक शराबी के पैर क्यों डगमगा जाते है।
उसके कंधो पर अर्थव्यवस्था का बोझ होता है।

5.       मोदी जी की जनता से अपील : ठेके खुल चुके हैं । पीने के बाद घर पर ही रहें । कोई भी चीन को सबक सिखाने नहीं निकलेगा ।

6.       शराब की दुकानें इसलिए खुलवाई जा रही हैं, क्योंकि आरबीआई गवर्नर ने कहा है, दो से तीन क्वार्टर में अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी।

7.       जो शराब नहीं  पीते,  वे भी! अर्थव्यवस्था में सहयोग करने के लिए शराब खरीद कर दान करें!!  इस उपकार के लिए उन्हें भी युगों युगों तक याद किया जाएगा!!

8.       लॉकडाउन में 45 दिन शराब न पीकर  जनता ने बता दिया कि वो बिना शराब के जिंदा रह सकते हैं। लेकिन ठेके खोल कर सरकार ने बता दिया कि शराब के बिना सरकार मर जाएगी।

9.       जब कोई शराब लेने निकले तो ताली बजाकर उसका उत्साहवर्धन करें... क्योंकि वह देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने जा रहा है

10.   कोरोना वैक्सीन भारत भी बना सकता था........बस ठेके बंद थे।


-----और अंत में
सरकारों ने जेब भी काट ली बेचारों की
जो शराबी समुदाय पूरी हिम्मत लगाकर देश की अर्थव्यवस्था को बचाने निकला था, उसके साथ कुछ सरकारों ने तो साहूकारों से भी बुरा सलूक किया है। दिल्ली ने जहां पांच मई से शराब की कीमतों में 70 फीसदी का इजाफा कर दिया वहीं, हरियाणा सरकार भी पीछे नहीं रही और उसने ने भी कोरोना सेस लगा दिया। राज्य में देसी शराब के क्वार्टर पर पांच रुपये, भारत निर्मित अंग्रेजी शराब के क्वार्टर पर 20 रुपये  की दर से इसे लगाया गया  है। वहीं स्ट्रांग बीयर बोतल पर पांच और माइल्ड बीयर बोतल पर दो रुपये का इजाफा किया गया है।

Monday, May 4, 2020

सरकारों के लिए 'जान' से प्यारा 'जाम'



लॉकडाउन के पहले दो चरणों की सख्ती में कुछ छूट के साथ तीसरे चरण की आज से शुरुआत हुई, लेकिन पहला ही दिन हंगामेदार रहा। शराब के ठेके खोलने का एक आदेश इसकी वजह बना। पहले ही दिन भोर से ही ठेकों के बाहर कई किलोमीटर की लाइनें लग गई। दिल्ली, उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश तक सिर्फ तमिलनाडु को छोड़कर शायद ही देश का कोई ऐसा राज्य रहा हो जहां शराब के शौकीनों की भीड़ न उमड़ी हो। तमिलनाडु ने सात मई से शराब की दुकाने खोलने का ऐलान किया है। इसका असर यह रहा कि तमिलनाडु और तेलंगाना से शराब के शौकीन आंध्र प्रदेश के सीमावर्ती जिलों चित्तूर, एसपीएस नेल्लोर, पूर्वी गोदावरी और कृष्णा में दुकानों के बाहर पंक्तियों में खड़े नजर आये। हालांकि सभी जगह निषिद्ध क्षेत्रों में शराब के ठेके नहीं खुले हैं। 
     
 दिल्ली समेत कई जगह तो पुलिस को लाठियां फटकारकर हालात को काबू करना पड़ा। इस पूरी स्थिति में सभी जगह सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक मेलजोल से दूरी) के नियम की सरेआम धज्जियां उड़ी। स्थिति बिगड़ने के कारण दिल्ली, पश्चिम बंगाल, राजस्थान में कई जगह शराब की बिक्री बंद करनी पड़ी। शराब को लेकर मची यह आपाधापी हैरान करने वाली थी। साथ ही कोरोना वायरस महामारी को लेकर अभी तक बरती जा रही सतर्कता को लोगो द्वारा ऐसे दरकिनार करना भी पीड़ादायक था। इस नासमझी से दुखी उन सभी लोगों को एक ही सवाल साल रहा था कि आखिर लोग यह क्यों नहीं समझ रहे कि शराब के ठेके को छूट सरकार ने दी है, कोरोना वायरस ने नहीं।  
वहीं राज्य सरकारों की शराब की ठेके खोलने को लेकर दिखाई गई हड़बड़ी भी समझ नहीं आ रही थी। आखिर लॉकडाउन के अभी तक के 40 दिनों में सख्ती से सामाजिक मेलजोल के नियम पर अमल की कोशिशों से कोरोना वायरस नियंत्रण पाने में राज्य सरकारें ही सफल रही थी। फिर इसका जो फायदा उन्होंने हासिल किया उसे वह क्यों गंवा देने पर आमादा है, यह समझ नहीं आया।
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकारों की खूब किरकरी हुई। लोगों ने न केवल सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ने वाले तमाम वीडियो और फोटो शेयर किए  बल्कि  प्रधानमंत्री समेत तमाम नेताओं को टैग कर उनसे इस आदेश को वापस लेने की विनती भी की। हालांकि इस सब का कोई असर नहीं दिखा और ठेके बंद होने से राजस्व का रोना रोने वाली सरकारों के कान पर कोई जूं नहीं रेंगी। हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने जरूर यह ऐलान किया कि अगर लोग सामाजिक मेलजोल से दूरी के नियम पर अमल नहीं करेंगे तो ठेकों को खोलने का फैसला वापस ले लिया जाएगा। बाकी राज्य सरकारों ने इस पर क्यों ऐसा कोई रुख नहीं दिखाया, यह समझ नहीं आया। क्या राज्य सरकारों को जान से ज्यादा जाम प्यारा है? अगर ऐसा नहीं है तो ठेकों के बाहर सामाजिक मेलजोल से दूरी के नियम पर अमल कराएं और अगर यह संभव न हो तो इन्हें बंद करने में एक पल भी न गंवाए। यह ठीक है कि राजस्व भी जरूरी है तो इसके लिए आनलाइन  बिक्री या टोकन के जरिये बिक्री जैसे विकल्प अपनाए जा सकते हैं, क्योंकि अगर कोरोना वायरस संक्रमण से स्थिति बिगड़ी तो शराब के लिए अपनी जान दांव पर लगा देने वाले लोगों के बीच इसे संभालना आसान नहीं होगा।  भारत में सोमवार को कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या 42836 पर पहुंच गई। जबकि संक्रमण के कारण मृतकों की संख्या  1389 हो गई।

Sunday, May 3, 2020

लॉकडाउन के दो चरणों के 40 दिन पूरे, देश का आज से तीसरे चरण में प्रवेश


कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन (बंद) को आज 40 दिन पूरे हो गए। 25 मार्च से 14 अप्रैल और 15 अप्रैल से 3 मई 2020 की अवधि पूरी कर लॉकडाउन सोमवार (4-17 मई) से अगले दो हफ्तों के अपने तीसरे चरण में प्रवेश कर गया है। हालांकि पहले दो चरणों की सख्ती के बाद लॉकडाउन 3.0 में पाबंदियों में कई छूट भी दी गई हैं। देश के समस्त जिलों को रोगियों की संख्या के आधार पर ग्रीन, आरेंज और रेड जोन में बांटकर ये छूट प्रदान की गई है। देश में 130 रेड जोन, 284 आरेंज जोन और 319 ग्रीन जोन घोषित किए गए हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के सभी जिले रेड जोन में रखे गए हैं। सर्वाधिक  रेड जोन (19) उत्तर प्रदेश में हैं वहीं गोवा में सिर्फ ग्रीन जोन हैं।  जहां ग्रीन जोन में लगभग सामान्य जैसी स्थिति (सार्वजनिक परिवहन  को छोड़कर) रहेगी , वहीं रेड जोन में सर्वाधिक  सख्ती होगी। हालांकि हॉटस्पॉट घोषित किए गए क्षेत्र जो किसी भी जोन के हों, इन छूटों के हकदार नहीं होंगे।    
इसी के साथ देश में संक्रमण के मामले बढ़कर 40 हजार के आंकड़े को पार कर गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार देश में शनिवार से रविवार के बीच 24 घंटों में 2487 नए मामले सामने आए और  संक्रमितों की संख्या 40,263 पर पहुंच गई। जबकि इस दौरान हुई 83 मौतों से मृतकों का आंकड़ा भी 1306 पर पहुंच गया। जहां एक और बढ़ते हुए ये आंकड़े डराते हैं वहीं आकंड़ों का ऐसा ही एक ग्राफ राहत भी पहुंचा रहा है। यह है देशभर में ठीक होने वाले रोगियों की संख्या। चिकित्सकों की मेहनत के परिणामस्वरूप देश में 10886 लोग कोरोना संक्रमण से उबर चुके हैं। स्वस्थ होने वाले रोगियों की यह संख्या ही इस भयावह वायरस पर जीत की उम्मीद जगाती है।  

कोविड-19 के खिलाफ जंग में रविवार एक और महत्वपूर्ण घटना का गवाह बना, वह थी कोरोना योद्धाओं के सम्मान में तीनों सेनाओं द्वारा प्रदर्शित किया गया आभार। अग्रिम मोर्चे पर तैनात लाखों चिकित्सकों, पैरामेडिकल कर्मियों, सफाई कर्मियों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए राष्ट्रव्यापी कवायद के तहत भारतीय वायुसेना के लड़ाकू और परिवहन विमानों ने रविवार को देश के बड़े शहरों और नगरों के ऊपर भव्य फ्लाई पास्ट किया। वहीं, सैन्य हेलीकॉप्टरों ने देशभर के प्रमुख अस्पतालों पर आकाश से पुष्प-वर्षा की। सैन्य विमानों के बेडे में सुखोई-30 एमकेआई, मिग-29 जैसे विमान शामिल थे। देश के लगभग हर बड़े शहर में प्रमुख अस्पतालों पर पुष्पवर्षा और फ्लाई पास्ट देखा गया। दरअसल प्रमुख रक्षा अध्यक्ष विपिन रावत ने इस पहल का ऐलान किया था। दिलचस्प बात यह है कि इस बार जहां लॉकडाउन बढ़ाने के लिए पहले की तरह प्रधानमंत्री द्वारा कोई संदेश नहीं दिया गया और मात्र एक सरकारी आदेश  से इसकी अवधि बढ़ा दी गई, वहीं कोरोना योद्धाओं के प्रति आभार प्रकट करने के लिए राष्ट्रव्यापी कवायद का ऐलान सीडीएस ने एक वीडियो कान्फ्रेंस के जरिये किया।


लॉकडाउन 3.0 में भी ये बंद------
लॉकडाउन के इस चरण में भी हवाई, रेल, मेट्रो यात्रा ; सड़क मार्ग से अंतर-राज्यीय आवागमन  ; स्कूल, कॉलेज और अन्य शैक्षणिक संस्थान, प्रशिक्षण एवं कोचिंग संस्थान ; होटल एवं रेस्तरां आदि बंद रहेंगे। यही नहीं धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक सभाओं पर रोक रहेगी। जिम, थियेटर, मॉल, सिनेमा हॉल, बार भी बंद रहेंगे। सभी क्षेत्रों में आवाजाही की इजाजत मिलेगी, लेकिन सुबह सात बजे से रात सात बजे तक ।
ये छूट-----          
ग्रीन और ऑरेंज जोन में नाई की दुकान, स्पा और सैलून खोले जाने की इजाजत होगी। साथ ही, ई-कॉमर्स कंपनियां भी गैर-आवश्यक वस्तुएं बेच सकती हैं। मॉल और बाजार से इतर एकल शराब की दुकानों को भी बिक्री से छूट रहेगी। यही नहीं शराब की सभी दुकानों में, ग्राहकों के बीच कम से कम छह फुट  की दूरी रखनी होगी और एक समय पर पांच से अधिक लोग नहीं होंगे।  केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा इजाजत प्राप्त उद्देश्यों के लिये भी आवाजाही की इजाजत होगी।
                 

Thursday, April 30, 2020

वो मस्तमौला अंदाज और मासूम चेहरा........ आप हमेशा दिलों में रहेंगे चिंटू सर


ऋषि कपूर अब हमारे बीच नहीं है, यह यकीन करना बेहद मुश्किल हो रहा है। बचपन में उन्हें टीवी पर उनके निभाये किरदारों के माध्यम से जाना और इनके जरिये उन्होंने जो छाप मेरे बालसुलभ मन पर छोड़ी वह अमिट हो गई। यही वजह है कि कई मामलों में मैने उनकी नकल की। इनमें से ही एक है स्वेटर को लेकर उनका प्यार। अपनी फिल्मों में जितने तरह के स्वेटर और मफलर में ऋषि साहब नजर आए शायद ही कोई और अभिनेता दिखा हो। हमने भी उनकी तरह खूब स्वेटर पहने और जोड़े।    
हमारा बचपन आज के बच्चों जैसा तकनीक सुलभ नहीं था। न तो डीटूएच था और न ही इंटरनेट। तो फिर यूट्यूब, नेटफिलक्स और 24 घंटे फिल्म और फिल्मी गानों का सवाल ही नहीं। ले-देकर एक दूरदर्शन था जो रविवार को एक फिल्म और बुधवार और शुक्रवार को फिल्मी गाने दिखाता था। हां रविवार सुबह भी रंगोली में गाने आते थे। यानी फिल्मों और उनकी दुनिया से जुड़ाव का यही एक साधन था। ऐसे में जब मैने पहली बार टीवी पर प्रसारित हो रही फिल्म बॉबी देखी तो उसमें ऋषि कपूर के एक किशोर तौर पर निभाए किरदार ने जैसे बालसुलभ मन पर कब्जा कर लिया। यह ऋषिकपूर की पहली फिल्म थी जो मेरी भी संजीदगी के साथ देखी गई पहली  फिल्म थी। आठ-नौ बरस के बालक को इसने दीवाना बना लिया। इसके बाद एक और फिल्म अब तक कई बार देख चुका हूं और जिसके गाने तो आज भी सुनता हूं वह है..प्रेमरोग।
ऋषि कपूर साहब मेरे पसंदीदा उन कुछ अभिनेताओं में शामिल रहे जिनकी फिल्में देखकर मैं बड़ा हुआ, लेकिन उनके अभिनय को नहीं भूला। बचपन में उन फिल्मों को देखने का जो नजरिया था उम्र के  साथ वह भी बदला और इसी के साथ फिल्म को फिर से देखा। यह कपूर साहब का ही जादू है कि अब भी कर्ज,  नागिन, चांदनी, लम्हे, दीवाना फिल्म अगर टीवी पर आ रही है तो उन्हें नजरअंदाज नहीं कर पाता हूं।  
उम्र के दूसरे पड़ाव पर भी ऋषि कपूर और मंजे हुए अभिनेता के तौर पर सामने आए। इनमें अग्निपथ में निभाये उनके किरदार ने तो ऐसा असर डाला कि यकीन करना मुश्किल हुआ। जिस अभिनेता को बचपन से बुराई के खिलाफ लड़ते देखा उसका नकारात्मक रूप मन ने स्वीकार नहीं किया। आखिरी फिल्म जो मैने उनकी देखी वो थी मुल्क जिसमें एक मुसलमान के किरदार में उन्होंने बेहतरीन छाप छोड़ी।
एक अभिनेता के साथ-साथ एक शख्स के तौर पर कपूर साहब की जिंदादिली भी मन को छू लेने वाली थी। अपनी बात को सख्ती से कहना और खरी-खरी कहना यह बाद के उनके जीवन का एक हिस्सा बन गया था। शायद इसी सख्ती के कारण जब तब उनकी परिजनों के साथ अनबन की खबरें भी आईं। टिवटर पर तो वह खूब सक्रिय थे और जब तब अपनी बात को लेकर अड़ जाते थे। ट्रोल किए जाने पर भी किसी की परवाह किए बिना उन्हें खूब जवाब देते थे।    
ऋषि कपूर साहब की आज सुबह जब निधन की खबर आई तो एक बारी सन्न रह गया। सहसा यकीन नहीं हुआ। इरफान खान के बाद एक और दिग्गज का यूं चले जाना बुरी तरह झकझोर गया है। लॉकडाउन के इस समय में जब सब घरों में कैद हैं और अंजाने कोरोना वायरस से सहमे हुए हैं, ये झटका हिला देने वाला है। ऋषि कपूर का जाना एक अभिनेता का जाना नहीं  है, यह किसी अपने अजीज का जाना है। उस अजीज का जिसने उस वक्त आपको अभिनय से हंसाया-रुलाया-सिखाया जब आप अपने जीवन की सीढ़िया चढ़ रहे थे, एक व्यक्ति के तौर पर मुकम्मल हो रहे थे। अलविदा चिंटू सर, अब आप पहले की तरह हमसे रुबरु नहीं होंगे, लेकिन आपका काम, आपका अभिनय न केवल हमे बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करता रहेगा।  ...

आप हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे।

Tuesday, April 21, 2020

देश की कोरोना वायरस से जंगः घर में लॉकडाउन का एक माह पूरा

कोरोना वायरस के बढ़ रहे प्रकोप और सावधानियों को लेकर सरकार द्वारा की जा रही अपीलों के बीच एक माह पहले (21 मार्च 2020)  लगभग इसी वक्त ( रात 10.30 बजे)  जब अपने गृहनगर खेकड़ा पहुंचा था, तो यह कहीं तक भी अंदेशा नहीं था, कि लॉकडाउन में यहीं फंस जाऊंगा।  हर बार की तरह इस बार भी यही सोचकर आया था कि तीन दिन की छुट्टियां बिताकर वापस दिल्ली पहुंच जाऊंगा और फिर रोज की तरह दफ्तर और बाकी काम। दिल्ली से चलने से पहले मन में एक अंदेशा था, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 22 मार्च  रविवार को एक दिन के जनता कर्फ्यू के ऐलान को लेकर जन्मा था, लग रहा था जैसे लंबी लड़ाई की शुरुआत होने वाली है। इस अंदेशे की वजह थी इस दिन मेट्रो, रेल समेत सार्वजनिक सेवाओं का बंद होना। मन में एक खौफ पल रहा था कि आने वाले दिन कठिनाई भरे होने वाले हैं। 
दरअसल, कोरोना के खिलाफ जंग की शरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि देशवासी 22 मार्च को रात नौ बजे तक जनता कर्फ्यू का पालन करे। इसे उन्होंने जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का कर्फ्यू का नाम दिया था। उन्होंने शाम पांच बजे लोगों से कोरोना योद्धाओं के उत्साहवर्धन के लिए ताली, थाली बजाने की अपील भी की थी।
22 मार्च को जनता कर्फ्यू का पालन किया और घर से नहीं निकला, 23 तारीख भी बीती पर ये क्या 24 को प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन ने जैसे मन में पनप रही आशंका को सही साबित कर दिया। रात बारह बजे से 21  दिन के लॉकडाउन का ऐलान हो गया। यानि 25 मार्च से अगले  21 दिन तक जो जहां है, वहीं रहे।
प्रधानमंत्री केे राष्ट्र के नाम संबोधन तो कई हुए,लेकिन बेहद कठोर निर्णय वाला यह दूसरा माना जा सकता है। इससे पहला था नोटबंदी का। यह भी गजब इत्तफाक है कि जहां नोटबंदी के दिन भी अपनी दफ्तर से छुट्टी थी, वहीं लॉकडाउन का ऐलान भी हमने साप्ताहिक अवकाश होने के चलते घर पर ही बैठकर सुना।
देश अगले 21 दिनों के लिए लॉकडाउन हो  चुका था और हम इसी चुनौतियों को लेकर चिंताओं में घिर चुके थे। इन्हीं में सबसे पहली थी, काम कैसेे होगा। हालांकि दफ्तर इस चुनौती को पहले ही भांप चुका था और होली 10 मार्च के बाद से इसकी तैयारियां होने लगी थी, सभी  लोगों ने घर  से काम करने की तैयारियां करने को लेकर अपने-अपने लैपटॉप, डेस्कटॉप को  अपडेट कराना शुरू कर लिया था। संपादक जी ने सभी को इसके  लिए प्रेरित किया और लगभग हर साथी आपात स्थिति में घर से काम करने को लेकर अपनी तैयारी पूरी कर चुका  था। सब मोर्चे पर आ डटे और उनके साथ हम भी। 25 मार्च से विधिवत तौर पर घर से काम करना शुरू किया जो आज तक अनवरत जारी है.......



                                             एक और वज्रपात, नीरज भैया को  लील गया कोरोना  दिल के अंदर कुछ टूट सा गया है, ऐसा कुछ, जिसका जुड़...