Sunday, August 9, 2020

-------फिलहाल----- हिरोशिमा और नागासाकी के सबक 75 साल बाद भी अधूरे

 

(नागासाकी स्थित नागासाकी शांति पार्क जहां रविवार को परमाणु हमले की 75वीं बरसी पर लोग एकत्र हुए और एटमी हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धाजंलि दी। साभार-जापान टाइम्स।)

अगस्त माह की शुरुआत में हर साल दुनिया जापान में बरपाई गई उस तबाही और क्रूरता को याद करती है, जिसने मानवता को कभी न भरने वाला जख्म दिया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा छह दिसंबर 1945 में पहले हिरोशिमा में और उसके तीन दिन बाद यानी नौ अगस्त को नागासाकी में परमाणु बम गिराया गया था। माना जाता है कि  इन परमाणु हमलों में जापान में दो लाख से ज्यादा लोग तत्काल मारे गए। बाद में भी रेडिएशन अपना कहर बरपाता रहा। इस तबाही को इस बरस 75 साल पूरे हो गए हैं। आज भी हिरोशिमा में करीब 50 हजार लोगों पर इस हमले का असर है जबकि नागासाकी में करीब 30 हजार लोग इसका दंश झेल रहे हैं।

इस तबाही के बाद से दुनिया भर के अमन पसंद लोग साल दर साल न सिर्फ दुनिया के देशों को आगाह करते रहे हैं, बल्कि एटमी हथियारों  की होड़ रोकने के लिए अपनी हर संभव कोशिश में जुटे रहे हैं। हालांकि ये कोशिशें थोथी ही नजर आती हैं, क्योंकि हिरोशिमा और नागासाकी के बाद से परमाणु हथियार वाले देशों की संख्या बढ़ी ही है। कुछ ने अपनी सुरक्षा तो कुछ ने क्षेत्रीय सुरक्षा की आड़ में एटमी ताकत हासिल की जबकि बाकी देश येन-केन प्रकारेण इसे हासिल करने में जुटे हुए हैं।  

आखिर इस सुरक्षा के मायने क्या हैं, क्या यह सिर्फ थोथी दलील नहीं है, क्योंकि परमाणु बम का इस्तेमाल चाहे वह अपनी सुरक्षा के लिए किया जाए या दूसरे के लिए हर हाल में मानवता के लिए तो यह विनाशकारी ही साबित होगा। जहां भी गिरेगा वहीं की पुश्ते इसकी बर्बादी को झेलने के लिए अभिशप्त होंगी। इसके बावजूद चाहे ईरान और चाहे दक्षिण कोरिया या फिर ऐसे ही अन्य देश सत्ता दंभ और इससे बनाए रखने के लालच में परमाणु ताकत पाने में जुटे हुए हैं।  


(नागासाकी स्थित नागासााकी शांति पार्क में रविवार को 11.02 बजे (स्थानीय समय अनुसार) लोगों ने मौन धारणकर परमाणु हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी। साभार-जापान टाइम्स) 


आखिर किससे और किसलिए सुरक्षा की बात ये देश करते हैं। दुनिया जिस ताकत का दंभ भरती है, वह कितनी खोखली है यह फिलहाल एक अंजान से कोरोना वायरस ने साबित कर दिया है। विनाशक मिसाइलों, अत्याधुनिक विमानों और परमाणु बमों के जखीरे वाले देश इस नामालूम से वायरस के सामने अपनी आबादी को बचाने में बौने साबित हो रहे हैं। आज यानी 9 अगस्त 2020 तक दुनिया में 1,98,06,285 लोगों को यह वायरस अपनी चपेट में ले चुका है। जबकि 7,29,591 लोगों की इससे मौत हो चुकी है। कोरोना वायरस संक्रमण की जद में आने  वाले देशों में पहले नंबर पर दुनिया का सबसे ताकतवर देश कहा जाने वाला अमेरिका है जहां 51.5 लाख लोगों में संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है। वहीं यहां यह वायरस 1.65 लाख लोगों की जान ले चुका है।

वायरस के कहर से पीड़ित देशों में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर ब्राजील (संक्रमित-3,01,369 और मृत 1,00,543)और तीसरे नंबर पर भारत (कुल संक्रमित 2,153,010 और मृत 43,453) है। हालांकि दावा यह भी है कि दुनिया के कुल संक्रमितों में से 1.23 करोड़ लोग इस संक्रमण से उबर चुके हैं।

दुनिया में अपनी विनाशलीला दिखा रहे कोविड-19 को मात देने के लिए पूरी दुनिया अपनी एडी-चोटी का जोर लगाकर इसकी दवा बनाने में जुटी है, लेकिन अभी तक उसके हाथ सफलता नहीं लग सकी है। जबकि वायरस को सामने आए एक साल होने को है, क्योंकि अब ऐसी जानकारी सामने आ रही है कि पिछले साल अगस्त में इस वायरस ने चीन को अपनी जद में ले लिया था।

परमाणु हथियारों के प्रति दुनिया के देशों की ललक से साफ जाहिर होता है कि हिरोशिमा और नागासाकी के सबक अधूरे ही रह गए, क्योंकि अगर एटमी हथियारों की होड़ में पड़ने के बजाय मुल्कों ने अपने यहां स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सुधारों पर जोर दिया होता तो अब कोरोना की यह विभीषिका इतनी भयावह नहीं होती। स्वास्थ्य क्षेत्र के सुधार वेंटीलेटर और दवाओं की किल्लत नहीं होने देते और शिक्षा सुधार लोगों को हाथ धोने का महत्व पहले ही समझा चुके होते सरकारों को अपने लोगों को हाथ धोने और मास्क लगाने के लिए बाध्य नहीं करना पड़ता। जुर्माने जैसी व्यवस्था नहीं रखनी पड़ती।  

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