Thursday, April 30, 2020

वो मस्तमौला अंदाज और मासूम चेहरा........ आप हमेशा दिलों में रहेंगे चिंटू सर


ऋषि कपूर अब हमारे बीच नहीं है, यह यकीन करना बेहद मुश्किल हो रहा है। बचपन में उन्हें टीवी पर उनके निभाये किरदारों के माध्यम से जाना और इनके जरिये उन्होंने जो छाप मेरे बालसुलभ मन पर छोड़ी वह अमिट हो गई। यही वजह है कि कई मामलों में मैने उनकी नकल की। इनमें से ही एक है स्वेटर को लेकर उनका प्यार। अपनी फिल्मों में जितने तरह के स्वेटर और मफलर में ऋषि साहब नजर आए शायद ही कोई और अभिनेता दिखा हो। हमने भी उनकी तरह खूब स्वेटर पहने और जोड़े।    
हमारा बचपन आज के बच्चों जैसा तकनीक सुलभ नहीं था। न तो डीटूएच था और न ही इंटरनेट। तो फिर यूट्यूब, नेटफिलक्स और 24 घंटे फिल्म और फिल्मी गानों का सवाल ही नहीं। ले-देकर एक दूरदर्शन था जो रविवार को एक फिल्म और बुधवार और शुक्रवार को फिल्मी गाने दिखाता था। हां रविवार सुबह भी रंगोली में गाने आते थे। यानी फिल्मों और उनकी दुनिया से जुड़ाव का यही एक साधन था। ऐसे में जब मैने पहली बार टीवी पर प्रसारित हो रही फिल्म बॉबी देखी तो उसमें ऋषि कपूर के एक किशोर तौर पर निभाए किरदार ने जैसे बालसुलभ मन पर कब्जा कर लिया। यह ऋषिकपूर की पहली फिल्म थी जो मेरी भी संजीदगी के साथ देखी गई पहली  फिल्म थी। आठ-नौ बरस के बालक को इसने दीवाना बना लिया। इसके बाद एक और फिल्म अब तक कई बार देख चुका हूं और जिसके गाने तो आज भी सुनता हूं वह है..प्रेमरोग।
ऋषि कपूर साहब मेरे पसंदीदा उन कुछ अभिनेताओं में शामिल रहे जिनकी फिल्में देखकर मैं बड़ा हुआ, लेकिन उनके अभिनय को नहीं भूला। बचपन में उन फिल्मों को देखने का जो नजरिया था उम्र के  साथ वह भी बदला और इसी के साथ फिल्म को फिर से देखा। यह कपूर साहब का ही जादू है कि अब भी कर्ज,  नागिन, चांदनी, लम्हे, दीवाना फिल्म अगर टीवी पर आ रही है तो उन्हें नजरअंदाज नहीं कर पाता हूं।  
उम्र के दूसरे पड़ाव पर भी ऋषि कपूर और मंजे हुए अभिनेता के तौर पर सामने आए। इनमें अग्निपथ में निभाये उनके किरदार ने तो ऐसा असर डाला कि यकीन करना मुश्किल हुआ। जिस अभिनेता को बचपन से बुराई के खिलाफ लड़ते देखा उसका नकारात्मक रूप मन ने स्वीकार नहीं किया। आखिरी फिल्म जो मैने उनकी देखी वो थी मुल्क जिसमें एक मुसलमान के किरदार में उन्होंने बेहतरीन छाप छोड़ी।
एक अभिनेता के साथ-साथ एक शख्स के तौर पर कपूर साहब की जिंदादिली भी मन को छू लेने वाली थी। अपनी बात को सख्ती से कहना और खरी-खरी कहना यह बाद के उनके जीवन का एक हिस्सा बन गया था। शायद इसी सख्ती के कारण जब तब उनकी परिजनों के साथ अनबन की खबरें भी आईं। टिवटर पर तो वह खूब सक्रिय थे और जब तब अपनी बात को लेकर अड़ जाते थे। ट्रोल किए जाने पर भी किसी की परवाह किए बिना उन्हें खूब जवाब देते थे।    
ऋषि कपूर साहब की आज सुबह जब निधन की खबर आई तो एक बारी सन्न रह गया। सहसा यकीन नहीं हुआ। इरफान खान के बाद एक और दिग्गज का यूं चले जाना बुरी तरह झकझोर गया है। लॉकडाउन के इस समय में जब सब घरों में कैद हैं और अंजाने कोरोना वायरस से सहमे हुए हैं, ये झटका हिला देने वाला है। ऋषि कपूर का जाना एक अभिनेता का जाना नहीं  है, यह किसी अपने अजीज का जाना है। उस अजीज का जिसने उस वक्त आपको अभिनय से हंसाया-रुलाया-सिखाया जब आप अपने जीवन की सीढ़िया चढ़ रहे थे, एक व्यक्ति के तौर पर मुकम्मल हो रहे थे। अलविदा चिंटू सर, अब आप पहले की तरह हमसे रुबरु नहीं होंगे, लेकिन आपका काम, आपका अभिनय न केवल हमे बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करता रहेगा।  ...

आप हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे।

Tuesday, April 21, 2020

देश की कोरोना वायरस से जंगः घर में लॉकडाउन का एक माह पूरा

कोरोना वायरस के बढ़ रहे प्रकोप और सावधानियों को लेकर सरकार द्वारा की जा रही अपीलों के बीच एक माह पहले (21 मार्च 2020)  लगभग इसी वक्त ( रात 10.30 बजे)  जब अपने गृहनगर खेकड़ा पहुंचा था, तो यह कहीं तक भी अंदेशा नहीं था, कि लॉकडाउन में यहीं फंस जाऊंगा।  हर बार की तरह इस बार भी यही सोचकर आया था कि तीन दिन की छुट्टियां बिताकर वापस दिल्ली पहुंच जाऊंगा और फिर रोज की तरह दफ्तर और बाकी काम। दिल्ली से चलने से पहले मन में एक अंदेशा था, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 22 मार्च  रविवार को एक दिन के जनता कर्फ्यू के ऐलान को लेकर जन्मा था, लग रहा था जैसे लंबी लड़ाई की शुरुआत होने वाली है। इस अंदेशे की वजह थी इस दिन मेट्रो, रेल समेत सार्वजनिक सेवाओं का बंद होना। मन में एक खौफ पल रहा था कि आने वाले दिन कठिनाई भरे होने वाले हैं। 
दरअसल, कोरोना के खिलाफ जंग की शरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि देशवासी 22 मार्च को रात नौ बजे तक जनता कर्फ्यू का पालन करे। इसे उन्होंने जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का कर्फ्यू का नाम दिया था। उन्होंने शाम पांच बजे लोगों से कोरोना योद्धाओं के उत्साहवर्धन के लिए ताली, थाली बजाने की अपील भी की थी।
22 मार्च को जनता कर्फ्यू का पालन किया और घर से नहीं निकला, 23 तारीख भी बीती पर ये क्या 24 को प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन ने जैसे मन में पनप रही आशंका को सही साबित कर दिया। रात बारह बजे से 21  दिन के लॉकडाउन का ऐलान हो गया। यानि 25 मार्च से अगले  21 दिन तक जो जहां है, वहीं रहे।
प्रधानमंत्री केे राष्ट्र के नाम संबोधन तो कई हुए,लेकिन बेहद कठोर निर्णय वाला यह दूसरा माना जा सकता है। इससे पहला था नोटबंदी का। यह भी गजब इत्तफाक है कि जहां नोटबंदी के दिन भी अपनी दफ्तर से छुट्टी थी, वहीं लॉकडाउन का ऐलान भी हमने साप्ताहिक अवकाश होने के चलते घर पर ही बैठकर सुना।
देश अगले 21 दिनों के लिए लॉकडाउन हो  चुका था और हम इसी चुनौतियों को लेकर चिंताओं में घिर चुके थे। इन्हीं में सबसे पहली थी, काम कैसेे होगा। हालांकि दफ्तर इस चुनौती को पहले ही भांप चुका था और होली 10 मार्च के बाद से इसकी तैयारियां होने लगी थी, सभी  लोगों ने घर  से काम करने की तैयारियां करने को लेकर अपने-अपने लैपटॉप, डेस्कटॉप को  अपडेट कराना शुरू कर लिया था। संपादक जी ने सभी को इसके  लिए प्रेरित किया और लगभग हर साथी आपात स्थिति में घर से काम करने को लेकर अपनी तैयारी पूरी कर चुका  था। सब मोर्चे पर आ डटे और उनके साथ हम भी। 25 मार्च से विधिवत तौर पर घर से काम करना शुरू किया जो आज तक अनवरत जारी है.......



                                             एक और वज्रपात, नीरज भैया को  लील गया कोरोना  दिल के अंदर कुछ टूट सा गया है, ऐसा कुछ, जिसका जुड़...