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Monday, June 16, 2008
लग्जरी कारों की तेल पर सबिसडी बंद होनी ही चाहिए
बिल्कुल सही बात कही है योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने। महंगी कारों के शौकीनों को तेल पर सबिसडी नहीं मिलनी चाहिए। आखिर मिले भी क्यों? सस्ता पेट्रोल और डीजल आम आदमी के लिए है। ताकि गरीब किसान खेती के लिए पंपिंग सेट और ट्रेक्टर चला सके। सार्वजनिक परिवहन सस्ता रहे ताकि आम आदमी आसानी से सफर कर सके। साथ ही माल भाड़ा सस्ता रहे और जरुरत की चीजों के मूल्य काबू में रहे। सरकार ने १५०० सीसी और इससे ऊपर की कारों जेसे एसयूवी-एमयूवी पर १५-२० हजार टैक्स लगाकर इसकी शुरुआत कर दी है। विदेशों में आयल गजलर्स टैक्स के नाम से यह पहले से ही लगा है। अब भारत में भी यह लागू होगा। लेकिन इन कारों को पेट्रोल-डीजल का मामला अभी बाकी है। सवाल उठ रहा है कि अमीर लोगों को महंगा तेल कैसे बेचा जा सकता है। एक ही पेट्रोल पंप पर अलग-अलग दाम से तेल बिक्री कैसे होगी? फिर ज्यादातर अमीरों के अपने पेट्रोल पंप हैं, वे वहीं से तेल ले लेंगे। एक हल है। आयल गजलर्स के साथ-साथ भारी कारों पर साल भर में खर्च होने वाले तेल की अनुमानित मात्रा तय करते हुए सालाना कर लगा दिया जाए।उसकी खरीद-पुनरखरीद पर भी इसे लागू किया जाए। इसके अलावा पेट्रो पदार्थों पर टैक्स भी कम किया जाए। अभी केंद्रीय और राज्य सरकार का टैक्स ही तेल का तेल निकाल रहा है। सरकार दोहरा गेम खेल रही है। कच्चे तेल के दाम बढ़ने का तो रोना रोती है, लेकिन पेट्रोल डीजल पर लगाए गए बेतहाशा टैक्स का जिक्र नहीं करती। अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों में तेल के दाम इसी लिए कम हैं, क्योंकि सरकारों ने पेट्रो पदार्थों को दूध वाली गाय नहीं बना रखा। यह सही है कि विकास कार्यों के लिए सरकार को राजस्व जुटाना होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप पेट्रो पदार्थों पर ही सारा ध्यान लगा दें। सिगरेट-शराब, पान मसाला जैसी कई वस्तुएं हैं, जिन पर भारी टैक्स लगाया जा सकता है। इसका यह फायदा होगा कि जहां भारी राजस्व मिलेगा, वहीं महंगे होने के कारण पीने-खाने वाले लोग हतोत्साहित भी होंगे। एक बात यह भी समझ में नहीं आती कि सरकार एक ओर तो सिगरेट और शराब को प्रमोट करती है, वहीं इनके नुकसान बताने वाले बड़े-बड़े विज्ञापनों पर पैसा खर्च करती है। इन विज्ञापनों को बंद कर काफी पैसा बचाया जा सकता है।
जिंदगी को जितना समझता हूं ये उतना ही हैरान करती है..कभी लगता है हाय. ये क्या जिंदगी है, कभी लगता है वाह! ये ही जिंदगी है। ये नजरिया ही है जो कभी किताबों से हासिल होता है और कभी बातों से । बस इन्हें ही समेटने की कोशिश रहती है हमेशा।
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4 comments:
बातों बातों में सही लेकिन बहुत अच्छा लेख. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
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उल्टा तीर
हिन्दी चिट्ठाकारी में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
बधाई। लिखना जारी रखें।
आपकी इस बात से मेरी बिल्कुल सहमति है कि लक्ज़री कारों पर ईंधन रियायती दरों पर नहीं दी जानी चाहिये. हाल में की गई मूल्य वृध्दि के बजाय करों के नये उपायों की तलाश की जानी थी. इस मूल्य वृध्दि से मुनाफाखोरी बढ़ी है, जैसा कि पहले भी होता आया है.
Cgreports.blogspot.com
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